हाईकोर्ट ने आरोपियों की पहचान सार्वजनिक करने पर लगायी रोक, मीडिया/सोशल मीडिया में नहीं छप सकेंगे फोटो

हाईकोर्ट ने आरोपियों की पहचान सार्वजनिक करने पर लगायी रोक, मीडिया/सोशल मीडिया में नहीं छप सकेंगे फोटो

हाईकोर्ट की ग्वालियर पीठ ने अपने आज के आदेश में कहा-किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी भर से उसे दोषी नहीं माना जा सकता. पीड़ित और आरोपी को मीडिया के समक्ष प्रस्तुत कर पुलिस मीडिया ट्रायल को बढ़ावा दे रही है.

ग्वालियर
हाईकोर्ट (High Court) की ग्वालियर खंडपीठ ने आज एक अहम और बड़ा आदेश दिया. कोर्ट ने आरोपियों की पहचान सार्वजनिक करने पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने आरोपियों के फोटो मीडिया (Media) और सोशल मीडिया (Social Media) में छपवाने पर रोक लगा दी. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में तत्कालीन डीजीपी के 2014 के उस सर्कुलर पर रोक लगायी है जिसमें उन्होंने आरोपियों की फोटो सार्वजनिक करने की अनुमति दी थी.

मध्य प्रदेश में पुलिस अब आरोपियों के फोटो भी सार्वजनिक नहीं कर पाएगी.हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने अपना अहम फैसला सुनाते हुए जांच होने तक आरोपियों की पहचान गुप्त रखने का आदेश दिया है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि ज़िले के पुलिस अधीक्षक यानि SP की मंजूरी के बाद इलाके के थाना प्रभारी मीडिया से जानकारी साझा कर सकेंगे. कोर्ट ने ये आदेश अरुण शर्मा की याचिका की सुनवाई के बाद दिया.

मामला पुराना है. ग्वालियर की बहोड़ापुर पुलिस ने अरुण नाम के शख्स को गिरफ्तार किया था. अरुण को अपराधी बताते हुए पुलिस ने समाचार पत्रों और सोशल मीडिया में उसके फोटो जारी कर दिये थे. दरअसल 2014 में DGP ने एक सर्कुलर जारी किया था. उसमें पुलिस को आरोपियों के फोटो मीडिया में जारी करने की अनुमति दी थी.

हाईकोर्ट ने आदेश में कहा…
हाईकोर्ट की ग्वालियर पीठ ने अपने आज के आदेश में कहा-किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी भर से उसे दोषी नहीं माना जा सकता. पीड़ित और आरोपी को मीडिया के समक्ष प्रस्तुत कर पुलिस मीडिया ट्रायल को बढ़ावा दे रही है. आरोपियों की मीडिया परेड कराने की बजाए पुलिस को मामले की जल्द जांच पर फोकस करना चाहिए.कोर्ट ने कहा आज के इस आदेश की अवहेलना करने पर उस ज़िले का SP और संबंधित पुलिस अधिकारी दोषी माना जाएगा. अरुण मामले की अगली सुनवाई अब 9 नवंबर को होगी. कोर्ट ने सुनवाई के वक्त SP को VC के जरिए उपस्थित रहने के निर्देश दिए हैं.

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