कोर्ट का बड़ा फैसला: वसीयत को किसी समझौते के जरिए रद्द नहीं किया जा सकता
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-70 के तहत निर्दिष्ट तरीकों से ही निरस्त हो सकती हैसुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: वसीयत को किसी समझौते के जरिए रद्द नहीं किया जा सकता
New Delhi : सुप्रीम कोर्ट ने वसीयत को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. कोर्ट ने माना है कि एक वसीयत को किसी समझौते के जरिए रद्द नहीं किया जा सकता है. इसे केवल भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-70 के तहत निर्दिष्ट तरीकों के अनुसार ही रद्द किया जा सकता है.न्यायाधीश अजय रस्तोगी और अभय एस ओका की पीठ ने कहा है कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-70 के तहत उन आवश्यक अवयवों को स्पष्ट किया गया है जो वसीयत को रद्द करने के लिए जरूरी हैं.क्या है मामलाअदालत ने जिस मामले में यह टिप्पणी की उसमें मांगीलाल नामक एक शख्स ने छह मई 2009 को एक वसीयतनामा किया था. इसमें उसने अपनी जमीन का एक निश्चित हिस्सा अपनी बेटी रामकन्या और जमीन का कुछ हिस्सा अपने भाई के बेटों- सुरेश, प्रकाश और दिलीप के नाम किया था. इसके बाद सुरेश और रामकन्या ने 12 मई 2009 को आपस में एक समझौता किया, जिसके तहत उन्होंने जमीन का आपस में बंटवारा कर लिया.रामकन्या ने फरवरी 2011 को एक सेल डीड (बिक्री विलेख) तैयार किया जिसमें उन्होंने अपनी जमीन का हिस्सा बद्रीलाल को बेच दिया. वर्तमान मामले में बद्रीनाथ अपीलकर्ता हैं. ट्रायल जज ने माना था कि सुरेश और रामकन्या के बीच समझौता अवैध था और रामकन्या को जमीन बेचने का कोई अधिकार नहीं था. ट्रायल जज ने फरवरी 2011 के सेल डीड को शून्य भी करार दिया था और कहा था कि यह सुरेश के लिए बाध्य नहीं होगा.इस आदेश के खिलाफ दायर अपील को जिला न्यायालय ने खारिज कर दिया. इसके बाद अपीलकर्ता ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का रुख किया. हाईकोर्ट की एकलपीठ ने उसकी अपील को खारिज कर दिया था.ऐसे निरस्त हो सकती है वसीयतसुप्रीम कोर्ट ने पाया कि धारा-70 के अनुसार, वसीयत को किसी अन्य वसीयत या संहिता के जरिए निरस्त किया जा सकता है या वसीयतकर्ता की ओर से लिखित रूप में स्व वसीयत को रद्द करने के इरादे की घोषणा से या वसीयत को रद्द करने के इरादे से वसीयतकर्ता की उपस्थिति में और उसके निर्देश पर वसीयत को जलाने, फाड़ने या नष्ट करने पर ही निरस्त हो सकता है.सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ है. कोर्ट ने नोट किया कि मांगीलाल की ओर से निष्पादित वसीयत को किसी अन्य वसीयत को निष्पादित करके रद्द नहीं किया गया था और न ही वसीयत को मांगीलाल की उपस्थिति व उनके निर्देश पर किसी व्यक्ति द्वारा जलाया या नष्ट किया गया था.











