तेजस्वी यादव को मझधार में छोड़ NDA की नाव पर सवार हुए जीतन मांझी, बिहार चुनाव में ‘हम’ का करेंगे ‘बेड़ा पार’!

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    हाइलाइट्स:

    • 2015 के विधानसभा चुनाव में मांझी की पार्टी के एक विधायक जीते थे
    • 2019 के लोकसभा चुनाव में भी मांझी कुछ खास नहीं कर पाए थे
    • अब मांझी पांच साल बाद एक बार फिर से एनडीए में आ रहे हैं
    • मांझी महादलित खासकर मुसहर जाति के लोगों की राजनीति करते हैं

    पटना
    बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के घटक दल के रूप में चुनाव मैदान में उतरेगी। ‘हम’ के प्रवक्ता दानिश रिजवान ने बुधवार को बताया, ‘3 सितंबर को हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा एनडीए का हिस्सा बनेगी, इसकी घोषणा जीतन राम मांझी खुद करेंगें।’

    ‘हम’ इससे पहले भी एनडीए के साथ थी, लेकिन बाद में आरजेडी नेतृत्व वाले महागठबंधन का हिस्सा बन गई थी। बिहार की सियासत में दलित नेता के रूप में खुद को पेश करने वाले मांझी ने 2018 में एनडीए को छोड़कर महागठबंधन का दामन थाम लिया था, लेकिन महागठबंधन से भी पिछले दिनों उन्हेांने नाता तोड़ लिया था।

    दानिश रिजवान ने कहा कि विकास के लिए हम एनडीए का हिस्सा बनने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि सीट हमारे लिए कोई मुद्दा नहीं है। हम विकास के मुद्दे पर एनडीए के साथ जा रहे हैं। उन्होंने ‘हम’ के किसी भी पार्टी में विलय के प्रश्नों को भी पूरी तरह से नकार दिया।

    मांझी ने इससे पहले 27 अगस्त को मुख्यमंत्री आवास पहुंचकर नीतीश कुमार से मुलाकात की थी। दोनों नेताओं के बीच लंबी बातचीत हुई। नीतीश से मुलाकात के बाद मांझी ने अपने पत्ते नहीं खोले थे, लेकिन इतना तय माना जा रहा था कि ‘हम’ अब एनडीए में शामिल होगी। इसके बाद हालांकि मांझी की नजदीकियां पप्पू यादव के जन अधिकार पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) से भी बढ़ी।

    इसके बाद 2 सितंबर को कथित तीसरे मोर्चें को लेकर एक घोषणा की जानी थी, लेकिन ‘हम’ ने मंगलवार को इस बैठक को रद्द कर दिया। इस बीच, मांझी ने बुधवार को अपने पत्ते खोलते हुए ‘हम’ को एनडीए के जरिए ही बेड़ा पार कराने का फैसला ले लिया। इससे पहले मांझी नीतीश कुमार की पार्टी जदयू में थे, 2014 का लज़कसभा चुनाव हारने के बाद नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया था, लेकिन बाद में दोनों के बीच रिश्ते में तल्खी की वजह से उन्हें पद से हटा दिया गया।

    इसके बाद मांझी ने अलग पार्टी बना ली। उल्लेखनीय है कि आरजेडी, कांग्रेस, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी), राष्ट्रीय लज़क समता पार्टी (रालोसपा) और ‘हम’ के गठबंधन में मांझी लगातार समन्वय समिति बनाने की मांग करते रहे थे। मांझी ने चेतावनी दी थी अगर समिति बनाने को लेकर जल्द कोई फैसला नहीं लिया गया तो वे महागठंधन छोड़कर अलग रास्ता चुन सकते हैं। इसके बाद मांझी ने महागठबंधन को छोड़ने की घोषणा कर दी। गौरतलब है कि मांझी 2018 में एनडीए को छोडकर महागठबंधन में शामिल हुए थे।

    मांझी के वोटबैंक

    बिहार में दलित और महादलित को मिलाकर करीब 16 फीसदी वोटर हैं। इसमें से करीब 5 फीसदी रामविलास पासवान की पार्टी के साथ होने का दावा किया जाता है। वही जीतन राम मांझी के पास करीब 5.5 फीसदी मुसहर जाति के कोर वोटर हैं। जानकार मानते हैं कि पिछले दो चुनावों को देखकर कहा जा सकता है कि करीब दो से ढाई फीसदी वोट मांझी के नाम पर इधर से उधर होते हैं।

    मांझी की 15 सीटों की है डिमांड

    2020 बिहार विधानसभा चुनाव में मांझी 15 सीटों की डिमांड कर रहे हैं। हालांकि सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि उनकी पार्टी को 9-12 सीटें दी जा सकती है। मांझी 2015 में विधानसभा की 35 सीटों पर किस्मत आजमाना चाहते थे, लेकिन एनडीए में उन्हें 21 सीटें मिली थी। 21 सीटें मिलने से नाराज मांझी ने उस वक्त कहा था कि यदि उन्हें 35 सीटों पर किस्मत आजमाने का मौका मिलता तो पार्टी के प्रदर्शन का फायदा एनडीए को होता। हालांकि चुनाव परिणाम आने के बाद मांझी के दावे खोखले साबित हुए थे। मांझी अपनी पार्टी से केवल खुद विधानसभा पहुंच पाए थे। खुद मांझी ने मखदुमपुर और इमामगंज से किस्मत आजमाई और मखदुमपुर सीट से हार गए थे। इमामगंज से उन्होंने उदय नारायण चौधरी का शिकस्त दी थी। मांझी 2015 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जेडीयू से अलग हुए थे।

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